आजादी बोझ बन चुके संस्कारों से | Hindi Story

Ishwar Chand
9 Min Read

आजादी बोझ बन चुके संस्कारों से | Hindi Story

अनीता एक मिडिल क्लास फैमिली की लड़की थी। उसने साधारण पढ़ाई-लिखाई की थी। पर देखने में सुंदर होने के कारण उसका रिश्ता मानव के लिए मानव की मां सरोजनी वर्मा ने मांगा तो सिया के पापा निहाल हो गए। मानव स्मार्ट, पेशे से साइंटिस्ट और अच्छे खानदान का लड़का था।

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सरोजनी वर्मा जब अनीता के घर आयीं तो अनीता के पापा ने डरते हुए उनसे पूछा कि आपकी अगर कोई माँग हो तो बताइए। पूरा करना मेरे बस में होगा तो मैं ज़रूर करुंगा। अगर हमारे बस में नहीं होगा तो हम ये रिश्ता नहीं कर पायेंगे। तो उन्होंने स्वर में चाशनी घोलते हुए कहा कि हमें कुछ नहीं चाहिए बस मेहमानों और हमारी दो बेटी दामाद हैं। उनकी खातिरदारी अच्छे से कीजिएगा। मानव की दो बहनें और एक भाई था। अनीता के पापा ने यथासार्मथ्य खर्च करके बेटी को ब्याह दिया। विदाई के वक्त मां ने संस्कारों और परम्पराओं की पोटली थमाई। रोते हुए कहा, लड़की का घर उसका ससुराल होता है। अपने व्यवहार से सबको खुश रखना। तुम्हारा अच्छा स्वभाव ही तुम्हें ससुराल में सबकी आंखों का तारा बनाएगा। शादी करके जब अनीता ससुराल पहुंची तो धीरे धीरे उसे सच्चाई पता लगने लगी। उसे बहु कम नौकरानी ज्यादा समझा जाता था। जब तब उसकी ननदें मायके आती और उसे सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थीं। बेचारी अनीता कमर कस कर दीदी-दीदी कह कर उनकी खातिरदारी में लगी रहती पर मजाल कि उनका मुँह कभी भी सीधा हो जाए। उस पर सासू माँ उसे चैन की साँस भी नहीं लेने देती थी। उसका देवर उसके बनाए खाने में नुक़्स निकालता। हर समय उसे सबके सामने टोकता रहता। सासू माँ उसे समझाने के बजाय अनीता को कहती अपने मायके में तुमने क्या सीखा? एक काम तो ढंग से कर नहीं पाती हो। पता नहीं इस घर की पसंद, नापसंद कब समझोगी।

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धीरे-धीरे समय बीतने लगा। अब उसका तीन साल का बेटा गोपेश भी था। पर उसका वक्त नहीं बदला था। वह कभी मानव से कुछ कहने की कोशिश करती, तो उल्टा वह उसे डांट देता कि मुझे तो कभी कोई खराब व्यवहार नहीं दिखाई देता। दीदी और मां तुम्हें कितना प्यार करते हैं। हितेश तुम्हारी कितनी रिस्पेक्ट करता है। तुम मेरे मन में शक पैदा मत करो।

वह बिल्कुल मूक बन गई थी। जब उसके देवर हितेश की शादी हुई। उसकी देवरानी ईशा काफी रिच फैमिली से आयी थी। जुबान की बेहद मीठी और तेज थी। उसने दोनो ननदों के दिल तोहफे देकर व मीठी-मीठी बातें करके जीत लिए थे। जब भी वो लोग आते तो सारा काम अनीता करती। पर ईशा ऐसे जताती कि सारा वही कर रही है। एक दिन पूरे परिवार की महफिल जमी थी। डिनर के बाद अनीता सबके लिए “खीर “लेकर आई। सबने खायी तो बड़े ननदोई जी ने तारीफ की “खीर बहुत अच्छी बनी है” तो ईशा तुरंत बोली कि हमने तो परमानेंट “खानसामा” रखा है। सब ठहाके लगा कर हँस दिए।

किसी ने उसे कुछ नहीं कहा। अनीता को बहुत धक्का पहुँचा। ईशा को तो वह छोटी बहन समझती थी। वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई। काफी देर तक रोती रही फिर सोचने लगी कि क्या यही “इज्जत” है उसकी इस घर में!! मानव से तो कोई उम्मीद करनी बेकार है। उसे अपनी लडा़ई खुद लड़नी होगी। अगले दिन सुबह वह खड़ी नहीं उठी। सासू मां भुनभुनाते हुए कमरे में पहुंच गईं। सिया तुम अभी तक खडी़ नहीं उठी। घर का काम कौन करेगा? तुम अपने मायके से नौकर तो लेकर नहीं आयी हो। अनीता ने कहा माँजी मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी। ईशा कर लेगी।

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“वो तो बच्ची है उसके बस का नहीं है”। अनीता तो जैसे आसमान से गिर पड़ी। उसने राघव को आवाज दी । सुनिये! आज का नाश्ता आप अरेंज कर लीजिए। मेरी तबीयत ठीक नहीं है और माँ जी कह रही हैं कि ईशा बच्ची है वो नाश्ता नहीं बना पाएगी।

मां ईशा क्यों नहीं बना सकती? मानव ने कहा।

सासू मां अनीता को घूरती हुई चली गई। जैसे-तैसे सास बहू ने नाश्ता बनाया। आज किसी ने कुछ नहीं कहा सबने बिना चूं चपड़ किए खा लिया। अब दो दिन बाद संडे था। सासू मां ने ननदों को परिवार सहित खाने पर बुलाया। … अनीता खाने में क्या बनाओगी?

ऐसा करो राजमा, चावल, भरवां भिंडी, पनीर बटर मसाला, रोटी, मीठे में गाजर का हलवा बना लो। अनीता बोली ठीक है मैं पनीर बटर मसाला, राजमा ,चावल बना लेती हूं बाकी ईशा बना देगी। पर भाभी ईशा कैसे बनाएगी? हितेश बोला। जैसे मैं बनाती हूं। ऐसा कह कर वह लापरवाही से उसको अनदेखा करते हुए उठ खड़ी हुई। मानव भी बीच में बोल उठा अरे दीदी भी तो ईशा के हाथ का खाना खाकर बताएं कि हमारी ईशा कितना अच्छा खाना बनाती है? अब ईशा को न चाहते हुए भी काम करना पड़ रहा था। धीरे -धीरे अनीता ने हर जगह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी। चाहे घर काम हो या बाहरी मामला। पर वह समझ गई थी कि अब वह जो भी कहेगी सब मानव के सामने। अनीता को जो कुछ कहना होता वह मानव के सामने कहती। ऐसे में कोई भी कुछ नहीं कर पा रहा था क्योंकि सारी बातें आमने-सामने. होती थीं। ईशा की मिठास गायब होने लगी थी। और हितेश का विरोध बढ़ने लगा था। जब तक अनीता सह रही थी, तब तक सब ठीक था। पर जब उसने बोलना शुरू किया तो सब की असलियत सामने आने लगी थी। फिर एक दिन अचानक हितेश ने घोषणा कर दी कि उसने फ्लैट खरीद लिया है। डेकोरेशन का काम चल रहा है। एक महीने बाद शिफ्ट हो जाएगा।

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सासू माँ चुप थीं। शायद वो समझ चुकी थीं कि कौन गलत था। दोनो ननदें हितेश को समझा रही थीं कि फ्लैट को रेंट पर चढा़ कर यहीं पर रहे। पर ईशा ने बोला नहीं दीदी हमने बड़े प्यार से अपना घर खरीदा है। हम अपने घर ही जा रहें हैं। आप लोगों से मिलने आते रहेंगे। ननदें यह सुनकर अवाक रह गईं कि वह अपना घर है! तो ये किसका है?

वे चले गए। अब घर की स्थिति बदल चुकी है। अनीता और सासू मां साथ में रहते हैं सासू मां और ननदें अनीता को समझने लगी हैं और उन रिश्तों की कद्र करने लगी हैं जिनसे वो जुडी़ हैं। अब ननदें मेहमान नहीं परिवार का सदस्य बन कर आती हैं। सब खुल कर एन्जॉय करते हैं ।एक दूसरे का हाथ बँटाते हैं। मानव इसका कसूरवार खुद को समझ कर सिया से माफी माँग चुका है। वह उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। अनीता ने उन संस्कारों को छोड़कर अपने लिए आवाज़ उठाई थी जो उसे जन्म से घोट कर पिलाए गए थे। साहस से एक कदम उठा कर वह उस “बोझ” से मुक्त हो गई थी। जिसे वह बरसों से ढो रही थी।

दोस्तों अक्सर ऐसा ही होता है हम जितना झुकते जाते हैं उतना ही “शोषण” का शिकार होते हैं।झुकना उतना ही चाहिए जितना सह सकें जरूरत से ज्यादा झुकना “रिश्ते “निभाना नहीं “गुलामी” होती है। अक्सर लड़कियों को अपने माता-पिता के घर से संस्कारों में “तहजीब” बड़ों का सम्मान, आज्ञाकारी बनना सिखाया जाता है। ठीक है बनें। पर संस्कारों को “जेवरों (गहनों)” के रूप में पहनें, “हथकड़ी” के भेष में नहीं।

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