Dussehra 2024 : दशहरा 2024 कब है: जानिये तिथि, समय, और महत्व

Ishwar Chand
10 Min Read

दशहरा 2024 | Vijaya Dashami 2024

Dussehra

इस वर्ष दशहरा कब है? (Dussehra 2024 Date ?)

दशहरा अश्विन माह के दसवें दिन मनाया जाता है जो सितंबर-अक्टूबर में पड़ता है और इस वर्ष दशहरा या विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा।

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दशहरा या विजयादशमी महत्व (Dussehra or Vijayadashami significance)

दशहरा का त्योहार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। दशहरा (Dussehra) को विजयादशमी (Vijayadashami) भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। रावण के बुरे कर्म पर भगवान श्रीराम की अच्छाई की जीत हुई इसलिए इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाते हैं। विजयदशमी (Vijaya Dashami) पर रावण का पुतला बनाकर उसका दहन किया जाता है। रावण के साथ ही उसके बेटे मेघनाथ और भाई कुंभकरण के पुतले का भी दहन किया जाता है। इस बार दशहरे के त्योहार पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। दशहरा पर्व को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है। आज के वक्त में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक हैं। बुराई किसी भी रूप में हो सकती हैं जैसे क्रोध, असत्य, बैर, इर्षा, दुःख, आलस्य आदि। किसी भी आतंरिक बुराई को ख़त्म करना भी एक आत्म विजय हैं और हमें प्रति वर्ष अपने में से इस तरह की बुराई को खत्म कर विजय दशमी के दिन इसका जश्न मनाना चाहिये, जिससे एक दिन हम अपनी सभी इन्द्रियों पर राज कर सके।

यह बुरे आचरण पर अच्छे आचरण की जीत की ख़ुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। सामान्यतः दशहरा (Dashara) एक जीत के जश्न के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। जश्न की मान्यता सबकी अलग-अलग होती हैं। जैसे किसानो के लिए यह नयी फसलों के घर आने का जश्न हैं। पुराने वक़्त में इस दिन औजारों एवम हथियारों की पूजा की जाती थी, क्यूंकि वे इसे युद्ध में मिली जीत के जश्न के तौर पर देखते थे। लेकिन इन सबके पीछे एक ही कारण होता हैं बुराई पर अच्छाई की जीत। किसानो के लिए यह मेहनत की जीत के रूप में आई फसलो का जश्न एवम सैनिको के लिए युद्ध में दुश्मन पर जीत का जश्न हैं।

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एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, महिषासुर नामक एक राक्षस को ब्रह्मा जी से आशीर्वाद मिला था कि पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति उसे नहीं मार सकता है। इस आशीर्वाद के कारण उसने तीनों लोक में हाहाकार मचा रखा था। उसके बढ़ते पापों को रोकने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी ने अपनी शक्ति को मिलाकर मां दुर्गा का सृजन किया। मां दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर का मुकाबला किया और दसवें दिन इस असुर का वध कर दिया। इसके फलस्वरूप लोगों को इस राक्षस से मुक्ति मिल गई और चारों तरफ हर्ष का मौहाल हो गया। मां दुर्गा को दसवें दिन विजय प्राप्त हुई थी इस कारण इस दिन को दशहरा (Dashara) या विजयादशमी (Vijaya Dashami) के रूप में मनाया जाने लगा।

दशहरा पर्व को मनाने की पौराणिक कहानी (Dussehra Festival story)

दशहरा (Dashara) के दिन के पीछे कई कहानियाँ हैं, जिनमे सबसे प्रचलित कथा हैं भगवान राम का युद्ध जीतना अर्थात रावण की बुराई का विनाश कर उसके घमंड को तोड़ना। राम अयोध्या नगरी के राजकुमार थे, उनकी पत्नी का नाम सीता था एवम उनके छोटे भाई थे, जिनका नाम लक्ष्मण था। राजा दशरथ राम के पिता थे। उनकी पत्नी कैकई के कारण इन तीनो को चौदह वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या नगरी छोड़ कर जाना पड़ा। उसी वनवास काल के दौरान रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। रावण चतुर्वेदो का ज्ञाता महाबलशाली राजा था, जिसकी सोने की लंका थी, लेकिन उसमे अपार अहंकार था। वो महान शिव भक्त था। वास्तव में रावण के पिता विशर्वा एक ब्राह्मण थे एवं माता राक्षस कुल की थी, इसलिए रावण में एक ब्राह्मण के समान ज्ञान था एवम एक राक्षस के समान शक्ति और इन्ही दो बातों का रावण में अहंकार था। जिसे ख़त्म करने के लिए भगवान विष्णु ने रामावतार लिया था।

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भगवान राम ने अपनी सीता को वापस लाने के लिए रावण से युद्ध किया, जिसमे वानर सेना एवम हनुमान जी ने भगवान राम का साथ दिया। इस युद्ध में रावण के छोटे भाई विभीषण ने भी भगवान राम का साथ दिया और अन्त में भगवान राम ने रावण को मार कर उसके घमंड का नाश किया। इसी विजय के स्वरूप में प्रति वर्ष विजियादशमी मनाई जाती हैं।

आज दहशरा कैसे मनाया जाता हैं? (Dussehra Festival Celebration in India)

आज के समय में दशहरा (Dussehra) इन पौराणिक कथाओं को माध्यम मानकर मनाया जाता हैं। माता के नौ दिन की समाप्ति के बाद दसवे दिन जश्न के तौर पर मनाया जाता हैं। जिसमे कई जगहों पर राम लीला का आयोजन होता है, जिसमे कलाकार रामायण के पात्र बनते हैं और राम-रावण के इस युद्ध को नाटिका के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

दशहरा का मेला (Dussehra Festival Mela)

कई जगहों पर इस दिन मेला लगता है, जिसमे कई दुकाने एवम खाने पीने के आयोजन होते हैं। उन्ही आयोजनों में नाट्य नाटिका का प्रस्तुतिकरण किया जाता हैं। इस दिन घर के सभी पुरुष एवम बच्चे दशहरे मैदान पर जाते हैं। वहाँ रावण, कुम्भकरण एवम रावण पुत्र मेघनाथ के पुतले का दहन करते है। सभी शहर वासियों के साथ इस पौराणिक जीत का जश्न मनाते हैं। मेले का आनंद लेते हैं। उसके बाद शमी पत्र जिसे सोना चांदी कहा जाता हैं उसे अपने घर लाते हैं। घर में आने के बाद द्वार पर घर की स्त्रियाँ, तिलक लगाकर आरती उतारकर स्वागत करती हैं। माना जाता हैं कि मनुष्य अपनी बुराई का दहन करके घर लौटा है, इसलिए उसका स्वागत किया जाता हैं। इसके बाद वो व्यक्ति शमी पत्र देकर अपने से बड़ो के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता हैं। इस प्रकार घर के सभी लोग आस पड़ोस एवम रिश्तेदारों के घर जाकर शमी पत्र देते हैं एवम बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं, छोटो को प्यार देते हैं एवम बराबरी वालो से गले मिलकर खुशियाँ बाटते हैं।

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Dussehra
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अगर एक पंक्ति में कहे तो यह पर्व आपसी रिश्तो को मजबूत करने एवम भाईचारा बढ़ाने के लिए होता हैं, जिसमे मनुष्य अपने मन में भरे घृणा एवम बैर के मेल को साफ़ कर एक दुसरे से एक त्यौहार के माध्यम से मिलता हैं। इस प्रकार यह पर्व भारत के बड़े पर्व में गिना जाता हैं एवम पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। हमारे देश में धार्मिक मान्यताओं के पीछे बस एक ही भावना होती हैं, वो हैं प्रेम एवं सदाचार की भावना। यह पर्व हमें एकता की शक्ति याद दिलाते हैं जिन्हें हम समय की कमी के कारण भूलते ही जा रहे हैं, ऐसे में यह त्यौहार ही हमें अपनी नींव से बाँधकर रखते हैं।

दशहरे का बदलता रूप

आज के समय में त्यौहार अपनी वास्तविक्ता से अलग जाकर आधुनिक रूप ले रहे हैं, जिसने इसके महत्व को कहीं न कहीं कम कर दिया हैं। जैसे-

  • दशहरे पर एक दुसरे के घर जाने का रिवाज था, अब ये रिवाज मोबाइल कॉल एवम इंटरनेट मेसेज का रूप ले चुके हैं।
  • खाली हाथ नहीं जाते थे, इसलिए शमी पत्र ले जाते थे, लेकिन अब इसके बदले मिठाई एवम तौहफे ले जाने लगे हैं, जिसके कारण यह फिजूल खर्च के साथ प्रतिस्पर्धा का त्यौहार बन गया हैं।
  • इस प्रकार आधुनिकरण के कारण त्यौहारों का रूप बदलता जा रहा हैं। और कहीं न कहीं आम नागरिक इन्हें धार्मिक आडम्बर का रूप मानकर इनसे दूर होते जा रहे हैं। इनका रूप मनुष्यों ने ही बिगाड़ा हैं। पुराणों के अनुसार इन सभी त्योहारों का रूप बहुत सादा था। उसमे दिखावा नहीं बल्कि ईश्वर के प्रति आस्था थी। आज ये अपनी नींव से इतने दूर होते जा रहे हैं कि मनुष्य के मन में कटुता भरते जा रहे हैं। मनुष्य इन्हें वक्त एवम पैसो की बर्बादी के रूप में देखने लगा हैं।
  • हम सभी को इस वास्तविक्ता को समझ कर सादगी के रूप में त्यौहारों को मनाना चाहिये। देश की आर्थिक व्यवस्थता को सुचारू रखने में भी त्यौहारों का विशेष योगदान होता हैं इसलिए हमें सभी त्यौहार मनाना चाहिये।
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