Govardhan Puja Date 2024: गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना जाता है। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान गोवर्धन यानी कि गिरिराज जी की पूजा का विधान है। साथ ही, श्री कृष्ण की पूजा भी की जाती है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) को अन्नकूट (Annakut) के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के दिन गोवर्धन भगवान को 56 भोग लगाया जाता है। इस दिन गोवर्ध परिक्रमा करने का भी बहुत महत्व है।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
Govardhan Puja (गोवर्धन पूजा) का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। यह दिवाली के पांच त्योहारों में से एक है, जिसकी शुरुआत धनतेरस के दिन होती है और आखिरी त्योहार भाई दूज के बाद गोवर्धन पूजा का होता है। गोवर्धन पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि में की जाती है। इस दिन घर में गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है। भगवान की कथा पढ़कर भोग प्रसाद लगाया जाता है। गोवर्धन भगवान की पूजा पुरुष करते हैं।
शास्त्रों की मानें तो भगवान श्री कृष्ण ने देवों के राजा इंद्र का घमंड चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया था। उन्होंने पूरे गोकुल की रक्षा की थी। यही वजह है कि गोवर्धन का त्योहार मथुरा और वृंदावन में मुख्य रूप से मनाया जाता है। इसके लिए जोर शोर से तैयारी की जाती है।
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2024) महत्व
Govardhan Puja (गोवर्धन पूजा) के दिन भगवान गोवर्धन और श्री कृष्ण की पूजा करने से जीवन में आने वाले कष्ट दूर हो जाते हैं। घर में मां लक्ष्मी का वास स्थापित होता है। गोवर्धन भगवान का आशीर्वाद मिलता है। घर की उन्नति होती है, सुख-समृद्धि आती है, घर में सकारात्मकता का संचार होने लगता है, आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तंगी और कर्ज जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं, सौभग्य में वृद्धि होती है, घर धन-धान्य से भरा रहता है।
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा।
गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। ऐसे गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा (Govardhan Puja) की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।
कब है गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2024)?
उदया तिथि के आधार पर गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 दिन शनिवार को मनाया जाएगा। गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर को मनाया जाएगा और इस दिन गोवर्धन पूजा का मुहूर्त शाम 6 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 45 मिनट तक है। गोवर्धन पूजा के लिए आपको 2 घंटा 45 मिनट का समय मिलेगा।
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2024) के सम्बन्ध में प्रचलित लोकगाथा
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja)के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है। कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया “मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।
मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की उपज होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहँकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के स्थान पर गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया।
इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियन्त्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र निरन्तर सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे लगा कि उनका सामना करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यन्त लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहँकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।
इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रङ्ग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
Govardhan Puja 2024 (गोवर्धन पूजा) की पूजा विधि
इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है। इस दिन आप सवेरे समय पर उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करीये पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से बनाएँ। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप बनाकर फूल, पत्ती, टहनीयो एवँ गाय की आकृतियों से सजाया जाता है।
गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।