Happy Lohri 2024: इस साल कब है लोहड़ी? जानें सही तिथि, महत्व

Ishwar Chand
9 Min Read
Happy lohri holiday background for punjabi festival

Lohri 2024 Date

Lohri
Happy lohri holiday background for punjabi festival

Lohri 2024 Date: लोहड़ी का पर्व इस बार 14 जनवरी 2024 दिन रविवार को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति पर जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन होता तो उससे एक दिन पूर्व रात्रि में लोहड़ी (Lohri) का पर्व मनाया जाता है। उत्तर भारत के प्रमुख पर्वों में से एक लोहड़ी सिखों और पंजाबियों के लिए बेहद अहम होता है। आमतौर पर लोहड़ी का पर्व सिख समुदाय के लोग मनाते हैं।

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लोहड़ी के पर्व पर रात के समय खुली जगह पर आग जलाई जाती है और उस आग के चारों ओर परिक्रमा की जाती है। इसके बाद चारों तरफ लोग एकत्र होते हैं और अग्नि में रेवड़ी, खील, गेहूं की बालियां और मूंगफली डालकर जीवन सुखी होने की कामना करते हैं। असल में लोहड़ी के पर्व को मुख्य रूप से नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन से ही ठंड का प्रकोप कम और रातें छोटी होने लगती हैं।

जनवरी महीने का आरंभ लोहड़ी (Lohri) के उत्साह और खुशी के साथ होता है, विशेषकर सिख समुदाय के लिए। यह पर्व नए फसल की खुशी का प्रतीक होता है। लोहड़ी की शाम पर आग जलाई जाती है और लोग एकत्रित होकर उसमें गेहूं, रेवड़ी, मूंगफली, खील, चिक्की, गुड़ आदि डालते हैं। इइस समय लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं, महिलाएं लोक गीत गाती हैं और संगीत का आनंद भी लेती हैं। यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का दिन माना जाता है। इसलिए लोग इसे सूर्योदय से एक दिन पहले मनाते हैं।

लोहड़ी पर्व का शुभ मुहूर्त : Lohri 2024

सूर्य 15 जनवरी को रात के 02:43 बजकर मकर राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेगा। लेकिन लोहड़ी को मकर संक्रांति के पूर्वदिन मनाया जाता है। इसलिए लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन प्रदोष काल लोहड़ी का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा और रात को 8 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगा।

इसलिए मनाई जाती है लोहड़ी : Lohri 2024

लोहड़ी फसल की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक खास पर्व माना जाता है। इस पर्व पर नई फसल की पूजा की जाती है। लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। इस दिन लोग अच्छी फसल के लिए सूर्य देव और अग्नि देव को आभार व्यक्त करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि अगले साल भी फसल की पैदावार अच्छी हो। इसके बाद सभी लोग अग्नि के गोल-गोल चक्कर लगाते हुए गीत गाते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हैं। साथ ही एक-दूसरे को शुभकामनाएं भी देते हैं।

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लोहड़ी पर्व का धार्मिक महत्व : Lohri 2024

सिख समुदाय में लोहड़ी पर्व का बड़ा महत्व है। यह पर्व किसानों के लिए बेहद खास होता है। लोहड़ी के दिन सूर्यदेव और अग्नि देवता की पूजा का विधान है। इस दिन किसान अच्छी फसल की कामना करते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं। लोहड़ी के दिन ही किसान अपने फसल की कटाई शुरू करते हैं। इसी खुशी में लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं।

लोहड़ी में गीतों का बड़ा महत्व है। इससे लोगों के ज़ेहन में एक नई ऊर्जा एवं ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है। इसके अलावा गीत के साथ नृत्य करके इस पर्व को मनाया जाता है। मूलरूप से इन सांस्कृतिक लोक गीतों में ख़ुशहाल फसलों आदि के बारे में वर्णन होता है। गीत के द्वारा पंजाबी योद्धा दुल्ला भाटी को भी याद किया जाता है। आग के आसपास लोग ढ़ोल की ताल पर गिद्दा एवं भांगड़ा करके इस त्यौहार का जश्न मनाते हैं।

Lohri

लोहड़ी पर्व से जुड़ी कहानी : Lohri 2024

लोहड़ी (Lohri) के पर्व पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है। लोहड़ी (Lohri) के कई गीतों में इनके नाम का ज़िक्र आता है। मान्यता के अनुसार मुगल काल में अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी पंजाब में ही रहता है। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की उस वक्त रक्षा की थी जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था।

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वहीं एक दिन दुल्ला भट्टी ने इन्हीं अमीर सौदागरों से लड़कियों को छुड़वा कर उनकी शादी हिन्दू लड़कों से करवाई थी। तभी से दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया जाने लगा और हर साल हर लोहड़ी (Lohri) पर ये कहानी सुनाई जाने लगी।

लोहड़ी पर्व की पौराणिक कथा : Lohri 2024

पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रजापति दक्ष भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह होने से खुश नहीं थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ करवाया। इस यज्ञ में प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रण नहीं दिया। तब मां सती ने भगवान शिव से पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की। इस पर महादेव ने कहा कि आमंत्रण के बिना किसी के कार्यक्रम में जाना ठीक नहीं है।

ऐसी स्थिति में वहां जाने से अपमान होता है। लेकिन मां सती के न मानने पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। जब मां सती यज्ञ में शामिल होने पहुंचीं, तो वहां शिव जी को लेकर अपमानजनक शब्द सुनकर वे दुखी हुईं। तब मां सती अपने पिता के द्वारा करवाए गए यज्ञ कुंड में समा गई थीं। इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष मां सती की याद में लोहड़ी (Lohri) का पर्व मनाया जाता है।

रीति-रिवाज : Lohri 2024

जैसा कि हमने बताया कि लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन इसके बावदू भी इस पर्व की लोक्रप्रियता का दायरा इतना बड़ा है कि अब इसे देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। किसान वर्ग इस मौक़े पर अपने ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं, ताकि उनकी फसल का अधिक मात्रा में उत्पादन हो।

भारत के अन्य भाग में लोहड़ी : Lohri 2024

आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व भोगी मनाया जाता है। इस दिन लोग पुरानी चीज़ों को बदलते हैं। वहीं आग जलाने के लिए लकड़ी, पुराना फ़र्नीचर आदि का भी इस्तेमाल करते हैं। इसमें धातु की चीज़ों को दहन नहीं किया जाता है। रुद्र ज्ञान के अनुसार इस क्रिया के तहत लोग अपने सभी बुरे व्यसनों का त्याग करते हैं। इसे रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ भी कहते हैं। यह आत्मा के बदलाव एवं उसके शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है।

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