Mahavir Jayanti 2024
Mahavir Jayanti 2024 : जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था। जैन शासन के मुताबिक, भगवान महावीर का जन्म चैत्र महीने में उगते चंद्रमा के तेरहवें दिन हुआ था। यह दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के मार्च या अप्रैल में आता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं का स्मरण करते हैं।
भगवान महावीर (Mahavir Jayanti 2024) के पिता राजा सिद्धार्थ और मां रानी त्रिशला थीं और बचपन में उनका नाम वर्धमान था। जैन परंपरा के मुताबिक, भगवान महावीर का जन्म वैशाली के पास कुण्डलपुर ग्राम में हुआ। जैन शासन द्वारा महावीर जयंती को भगवान महावीर (Mahavir Jayanti 2024) जन्म कल्याणक के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, महावीर जयंती चैत्र महीने के 13वें दिन यानी चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यानी 2024 में 21 अप्रैल को भगवान महावीर जयंती मनाई जाएगी।
Mahavir Jayanti 2024: महावीर जयंती जैन शासन में भगवान महावीर जन्म कल्याणक के नाम से मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह हर साल वार्षिक रुप से मार्च या अप्रैल के महीने में पड़ती है। यह पूरे देश के सभी जैन मंदिरों में बहुत अधिक जोश के साथ मनाई जाती है। भगवान महावीर से जुड़े हुए सभी मंदिरों और स्थलों को इस विशेष अवसर पर फूलों, झंडों आदि से सजाया जाता है। इस दिन, समारोह और पूजा से पहले भगवान महावीर स्वामी की मूर्ति को पारंपरिक स्नान कराया जाता है और इसके बाद भव्य जूलुस या शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन गरीब लोगों को कपड़े, भोजन, रुपये और अन्य आवश्यक वस्तुओं को बाँटने की परंपरा है।
इस तरह के आयोजन जैन समुदायों के द्वारा आयोजित किए जाते हैं। बड़े समारोह उत्सवों का गिरनार और पालीताना सहित गुजरात, श्री भगवान महावीर जी राजस्थान, पारसनाथ मंदिर कोलकाता, पावापुरी बिहार आदि में भव्य आयोजन किया जाता है। यह लोगों के द्वारा स्थानीय रुप से भगवान महावीर स्वामी जी की मूर्ति का अभिषेक करके मनाया जाता है। इस दिन, जैन धर्म के लोग शोभायात्रा के कार्यक्रम में शामिल होते हैं। लोग ध्यान और पूजा करने के लिए जैन मंदिरों में जाते हैं। कुछ महान जैनी लोग, जैन धर्म के सिद्धान्तों को लोगों तक पहुँचाने के लिए मंदिरों में प्रवचन देते हैं।
भगवान महावीर का जीवन | Mahavir Jayanti 2024
महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थांकार, 599 ईसा. पूर्व, भारत में बिहार के एक राजसी परिवार में जन्में थे। यह माना जाता है कि, उनके जन्म के दौरान सभी लोग खुश और समृद्धि से परिपूर्ण थे, इसी कारण इन्हें वर्धमान अर्थात् विद्धि के नाम से जाना जाता है। ये राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर पैदा हुए थे। यह माना जाता है कि, उनके जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये या तो ये सम्राट बनेगें या फिर तीर्थांकार। उनके जन्म के बाद इन्द्रदेव द्वारा इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थांकार के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया गया था।
30 वर्ष की आयु में घर छोड़ने के बाद ये गहरे ध्यान में लीन हो गए और इन्होंने बहुत अधिक कठिनाईयों और परेशानियों का सामना किया। बहुत वर्षों के ध्यान के बाद इन्हें शक्ति, ज्ञान और आशीर्वाद की अनुभूति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद, इन्होंने लोगों वास्तविक जीवन के दर्शन, उसके गुण और जीवन के आनंद से शिक्षित करने के लिए यात्रा की।
इनके दर्शन के पांच यथार्थ सिद्धान्त अहिंसा, सत्य, असत्ये, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह थे। इनके शरीर को 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त हुआ और इनकी पवित्र आत्मा शरीर को छोड़कर और निर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करके सदैव के लिए स्वतंत्र हो गई। इनकी मृत्यु के बाद इनके शरीर का क्रियाक्रम पावापुरी में किया गया, जो अब बड़े जैन मंदिर, जलमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
जैन धर्म के पांच प्रमुख सिद्धांत | Mahavir Jayanti 2024
जैन धर्म के पांच प्रमुख सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य।
जैन धर्म के अनुयायियों के मुताबिक, भगवान महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने 12 सालों की कठोर तपस्या के बाद अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की थी। जैन धर्म के संस्थापक नहीं, बल्कि प्रतिपादक थे। उन्होंने श्रमण संघ की परंपरा को एक सिस्टमेटिक तरीका दिया था। उन्होंने ‘कैवल्य ज्ञान’ की जिस ऊंचाई को छुआ था, वह अतुलनीय है। उनके उपदेश हमारे जीवन में किसी भी तरह के विरोधाभास को नहीं रहने देते।
जैन धर्म के मुताबिक, 72 साल की उम्र में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पावापुरी (बिहार) में भगवान महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त किया था। इस दिन जैन धर्म के लोग घरों में दीपक जलाकर दीपावली मनाते हैं।
भगवान महावीर 30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर और परिवार त्याग दिया और जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ से दीक्षा ली। 12 वर्षों की कठोर साधना के बाद उन्हें 557 ईसा पूर्व में तीर्थंकर तत्व प्राप्त हुआ। उन्होंने अहिंसा को सर्वोच्च धर्म बताया। उन्होंने कहा कि सभी जीवों में आत्मा होती है और उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं दिया जाना चाहिए।
जैन धर्म के मूल सिद्धांतों | Mahavir Jayanti 2024
अहिंसा (Non-Violence)
जैन धर्म में अहिंसा को महत्व दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार, सभी प्राणियों के प्रति करुणा और अहिंसा की भावना होनी चाहिए।
सत्य (Truth)
सत्य को जैन धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। धार्मिक जीवन में सत्य का पालन करना, अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त करना और दूसरों को सत्य के प्रति आदर्श बनाने में अहम भूमिका निभाता है।
अपरिग्रह (Non-Possession)
जैन धर्म में अपरिग्रह की भावना को महत्व दिया जाता है, जिसका अर्थ है सामर्थ्य और संबंधों के साथ बिना वजह संबंध नहीं बनाना। यह भावना साधारण तौर पर संपत्ति, धन और कपड़े की प्राप्ति को दूर करती है।
अनेकांतवाद (Non-Absolutism)
यह जैन धर्म का एक खास सिद्धांत है, जिसमें यह बताया जाता है कि सत्य को समझने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं और हर एक का अपना लक्षण होता है।
अस्तेय
अस्तेय का शाब्दिक अर्थ है – चोरी न करना। जैन धर्म में यह एक गुण माना जाता है। योग के सन्दर्भ में अस्तेय, पाँच यमों में से एक है। अस्तेय का व्यापक अर्थ है – चोरी न करना तथा मन, वचन और कर्म से किसी दूसरे की सम्पत्ति को चुराने की इच्छा न करना।