Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह सभी एकादशियों में सबसे कठिन मानी जाती है क्योंकि इस दिन भक्त जल और भोजन दोनों का त्याग करते हैं। ‘निर्जला’ का अर्थ है ‘बिना जल के’।
इस व्रत का महत्व बहुत अधिक है। मान्यता है कि इस एक एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त निर्जल रहकर भगवान का ध्यान करते हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही जल ग्रहण करते हैं।
दिल्ली जैसे शहरों में, इस दिन मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं और भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यह व्रत शारीरिक और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है और आत्म-संयम का अभ्यास कराता है।
Nirjala Ekadashi 2025: शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 6 जून 2025 को प्रातः 02:15 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 7 जून 2025 को प्रातः 04:47 बजे
उदया तिथि के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून 2025, शुक्रवार को रखा जाएगा। पारण का समय: 7 जून 2025, शनिवार को दोपहर 01:44 बजे से सायं 04:31 बजे तक रहेगा। व्रत का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद किया जाता है। हरि वासर समाप्त होने का समय प्रातः 11:25 बजे है, इसलिए इसके बाद पारण करना शुभ रहेगा।
Nirjala Ekadashi 2025: व्रत का महत्व
निर्जला एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ता है और इसे सभी एकादशियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और कठिन माना जाता है। ‘निर्जला’ नाम ही इस व्रत के महत्व को दर्शाता है, जिसका अर्थ है बिना जल के रहना। इस दिन भक्त पूर्ण रूप से जल और भोजन का त्याग करते हैं, जिससे शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है।
मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों के व्रतों का फल प्राप्त होता है। यह भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह व्रत आत्म-संयम, इच्छाशक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है। तपस्या के माध्यम से भक्त अपने इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं। इस व्रत का पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। दिल्ली जैसे क्षेत्रों में इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है।
Nirjala Ekadashi 2025: व्रत की पूजा विधि
- संकल्प एवं तैयारी: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु के समक्ष निर्जला व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को साफ कर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें।
- विष्णु जी की पूजा: भगवान विष्णु को पीले फूल, चंदन, फल, मिठाई और तुलसी दल अर्पित करें। घी का दीपक और धूप जलाएं। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- कथा श्रवण एवं आरती: निर्जला एकादशी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। भगवान विष्णु की आरती करें।
- दान-पुण्य: अपनी क्षमतानुसार गरीबों को जल, वस्त्र या भोजन का दान करें। प्यासे लोगों को पानी पिलाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें और फिर भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
Nirjala Ekadashi 2025: व्रत करने के लाभ
- ऐसा माना जाता है कि इस एक व्रत का पालन करने से पूरे वर्ष की सभी एकादशी व्रतों का फल मिल जाता है, जिससे अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।
- निर्जल रहने से शरीर डिटॉक्स होता है और पाचन क्रिया सुधरती है। यह व्रत मन को नियंत्रित करने और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।
- यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, और इसे करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है, जिससे मोक्ष की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।
Nirjala Ekadashi 2025: व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
- निर्जला व्रत का संकल्प: अपनी शारीरिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए ही निर्जला व्रत का संकल्प लें। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो फलाहार व्रत का विकल्प चुनें और संकल्प में इसका उल्लेख करें।
- शारीरिक श्रम से बचें: व्रत के दौरान अत्यधिक शारीरिक श्रम करने से बचें, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो और थकान महसूस न हो। आराम करें और भगवान का ध्यान करें।
- सकारात्मक रहें: व्रत के दौरान क्रोध, लोभ, मोह और अन्य नकारात्मक विचारों से दूर रहें। शांत और सकारात्मक मन से भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- जल का दान करें: इस दिन जल का दान करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। प्यासे लोगों को पानी पिलाएं या सार्वजनिक स्थानों पर पानी की व्यवस्था करें।
Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी से जुडी कथा?
निर्जला एकादशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध लघु कथा पांडवों में द्वितीय भीमसेन से संबंधित है। भीमसेन को भोजन बहुत प्रिय था और वे अपनी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते थे। एकादशी के दिन अन्य पांडव भाई और माता कुंती उपवास रखते थे, लेकिन भीमसेन के लिए यह अत्यंत कठिन होता था।
एक बार भीमसेन ऋषि वेदव्यास के पास गए और अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा कि वे अन्य एकादशी व्रतों को तो भोजन नियंत्रित करके कर सकते हैं, लेकिन निर्जल व्रत उनके लिए असहनीय है। वे चाहते थे कि उन्हें कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे उन्हें सभी एकादशियों के फल मिल जाएं।
तब ऋषि वेदव्यास ने भीमसेन को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का निर्जला व्रत रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस एक व्रत को करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त हो जाएगा। भीमसेन ने ऋषि की बात मानी और निर्जला एकादशी का कठोर व्रत रखा, जिसमें उन्होंने जल और भोजन दोनों का त्याग किया।
इस व्रत के प्रभाव से भीमसेन को सभी एकादशियों के पुण्य फल प्राप्त हुए और उनका शरीर भी शुद्ध हुआ। तभी से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी या निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह कथा इस व्रत के महत्व और उसकी कठिनता को दर्शाती है, साथ ही यह भी बताती है कि सच्ची श्रद्धा और संकल्प से कठिन तपस्या भी सफल हो सकती है।