Raksha Bandhan 2025: रक्षा बंधन का महत्व, अनुष्ठान और ऐतिहासिक गाथाएं

Ishwar Chand
7 Min Read

रक्षा बंधन, श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला हिन्दू त्योहार है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर स्नेह का प्रतीक राखी बांधती हैं और उनके सुख-समृद्धि तथा लंबी उम्र की कामना करती हैं। बदले में, भाई बहन की रक्षा करने और हर मुश्किल में उसका साथ देने का वचन देता है।

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रक्षा बंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई और बहन के बीच के खूबसूरत रिश्ते को मनाता है। यह नाम, जिसका अर्थ है ‘सुरक्षा का बंधन’, इस अवसर के महत्व को पूरी तरह से दर्शाता है। यह त्योहार श्रावण महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर एक पवित्र धागा बांधती हैं जिसे ‘राखी’ कहते हैं। यह राखी उनके प्यार, देखभाल और उनके भाइयों की सलामती के लिए उनकी प्रार्थना का प्रतीक है। बदले में, भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा करने और हमेशा उनके साथ रहने का वादा करते हैं। वे अपनी बहनों को उपहार भी देते हैं।

यह पर्व केवल रक्त संबंधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ऐसे किसी भी रिश्ते में मनाया जा सकता है जहाँ सुरक्षा और आदर का भाव हो। राखी का यह बंधन विश्वास और आत्मीयता को मजबूत करता है। घरों में उत्सव का माहौल रहता है, मिठाइयाँ बनती हैं और उपहारों का आदान-प्रदान होता है।

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन कब है?

रक्षाबंधन 2025 का पर्व शनिवार, 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 5:47 बजे से दोपहर 1:24 बजे तक रहेगा, जो कुल 7 घंटे 37 मिनट का है। यह समय पूर्णिमा तिथि के भीतर और भद्रा काल के समाप्त होने के बाद आता है, जिससे यह राखी बांधने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। भद्रा काल 8 अगस्त की सुबह 2:12 बजे से प्रारंभ होकर 9 अगस्त की सुबह 1:52 बजे तक रहेगा। इस दौरान राखी बांधना वर्जित माना जाता है। अतः इस अवधि में राखी बांधने से बचना चाहिए। इस वर्ष रक्षाबंधन पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जैसे सौभाग्य योग और शोभन योग, जो इस दिन के महत्व को और बढ़ाते हैं।

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Raksha Bandhan 2025: महत्व

रक्षा बंधन एक पावन हिन्दू त्योहार है जो भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बाँधती है और उसकी लंबी उम्र, सुख-समृद्धि की कामना करती है। बदले में भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता है और उसे उपहार देता है।

इस त्योहार का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यह पारिवारिक एकता, प्रेम और कर्तव्य की भावना को मजबूत करता है। रक्षा बंधन न केवल सगे भाइयों-बहनों तक सीमित रहता है, बल्कि आज यह रिश्तों की परिभाषा को व्यापक बनाता है – जहाँ राखी मित्र, सैनिकों, और यहाँ तक कि पर्यावरण (जैसे वृक्षों को राखी बाँधना) को भी बाँधी जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा के लिए अपनी प्रतिज्ञा निभाई थी जब उसने उन्हें राखी बाँधी थी। इस प्रकार, यह पर्व आत्मीय संबंधों और नैतिक कर्तव्यों की याद दिलाता है। रक्षा बंधन एक ऐसा त्योहार है जो प्रेम, श्रद्धा और विश्वास को समर्पित है।

Raksha Bandhan 2025: अनुष्ठान और उत्सव

रक्षाबंधन का त्यौहार कई दिल को छू लेने वाले रीति-रिवाजों और उत्सवों के साथ मनाया जाता है, जो भाई-बहन के रिश्ते की गहराई को दर्शाता है। दिन की शुरुआत बहनों द्वारा स्नान करके साफ कपड़े पहनने से होती है। राखी बांधने के लिए एक विशेष थाली तैयार की जाती है जिसमें रंग-बिरंगी राखियाँ, रोली (कुमकुम), चावल (अक्षत), दीपक, मिठाई और अगरबत्ती शामिल होती हैं।

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शुभ मुहूर्त देखने के बाद बहनें अपने भाई को रोली और चावल से तिलक लगाती हैं, फिर आरती करती हैं और फिर दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं। राखी बांधते समय बहनें भाई के स्वस्थ जीवन, सफलता और लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। भाई इस पवित्र बंधन को स्वीकार करता है और जीवन भर बहन की रक्षा करने का वचन देता है। इस आदान-प्रदान के बाद भाई अपनी बहन को स्नेह के प्रतीक के रूप में उपहार या पैसे देता है।

इस दिन घरों में खास पकवान और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। परिवार के सभी सदस्य एक साथ इकट्ठा होते हैं, जिससे घर में खुशी और उल्लास का माहौल बनता है। दूर-दूर रहने वाले भाई-बहन डाक या ऑनलाइन के ज़रिए राखी और उपहार भेजकर इस त्यौहार को मनाते हैं। कुल मिलाकर, रक्षा बंधन प्यार, सुरक्षा, एकजुटता और आपसी सम्मान का उत्सव है।”

Raksha Bandhan 2025: ऐतिहासिक महत्व

रक्षा बंधन का त्योहार, जो आज भाई-बहन के अटूट रिश्ते का पर्याय बन गया है, इसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी गहरा है। इस पर्व की जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हैं और विभिन्न कथाएं एवं घटनाएं इसके महत्व को दर्शाती हैं।

महाभारत काल में भगवान कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी कथा भी अत्यंत प्रचलित है। जब शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था। कृष्ण इस स्नेह से अत्यंत अभिभूत हुए और उन्होंने द्रौपदी को हर संकट में रक्षा करने का वचन दिया। चीरहरण के समय कृष्ण ने इसी वचन का पालन कर द्रौपदी की लाज बचाई। यह कथा भाई-बहन के बीच सुरक्षा और स्नेह के बंधन को मजबूती से स्थापित करती है।

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एक अन्य कथा राजा बलि और देवी लक्ष्मी से संबंधित है। जब भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन के कारण उनके लोक में द्वारपाल बन गए थे, तब देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर उन्हें भाई बनाया और उनसे विष्णु को वापस वैकुंठ भेजने का अनुरोध किया। राजा बलि ने राखी की लाज रखते हुए विष्णु जी को सहर्ष जाने दिया।

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