Guru Gobind Singh Jayanti 2025: सिखों के लिए क्यों खास है गुरु गोविंद सिंह, जानें कब है 10वें गुरु जी की जयंती

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Guru Gobind Singh Jayanti 2025: सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Jayanti) के जन्म दिवस पर मनाई जाती है यह गुरु गोबिंद सिंह जयंती। सिख संप्रदाय में गुरुओं की जयंती को प्रकाश पर्व के नाम से जाता है। प्रकाश पर्व को सिख संप्रदाय में सबसे ऊँचा उत्सव माना जाता है। अतः इस उत्सव को गुरु गोबिंद सिंह प्रकाश पर्व कहा जाता है। श्री गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh Jayanti) का जन्म 22 दिसम्बर 1666 की पौष शुक्ल सप्तमी तिथि को पटना साहिब में हुआ था।

अँग्रेज़ी कैलेंडर के दिन, पचांग तिथि तथा नानकशाही जंतरी (कैलेंडर) के दिन को लेकर कुछ मतभेद जरूर है, परंतु पौष शुक्ल सप्तमी तिथि को यह प्रकाश पर्व सबसे अधिक मान्यता के साथ मनाया जाता है। वे एक महान योद्धा तो थे ही, लेकिन उसके साथ एक महान कवि-लेखक भी थे। वह संस्कृत के अलावा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे। कई सारे ग्रंथों की रचना गुरु गोविंद सिंह द्वारा की गई, जो समाज को काफी प्रभावित करती है। ‘खालसा पंथ (khalsa)’ की स्थापना जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, इन्ही के द्वारा किया गया।

गुरु गोविंद साहब ने सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ’ साहिब की स्थापना की थी, वे मधुर आवाज के भी धनी थे। इसके साथ ही सहनशीलता और सादगी से भरे थे। गुरुनानक देव द्वारा स्थपित किया गया, यह संप्रदाय आगे चलकर सिख संप्रदाय कहा जाने लगा। गुरुनानक जी के बाद सिखधर्म के 9 गुरु और हुए, जिन्होंनें गुरुनानक जी के बाद सिखधर्म का प्रचार-प्रसार किया। सिख धर्म के दसवें गुरु “गोबिंद सिंह” इस संप्रदाय के अंतिम गुरु हुए।

गुरु गोविंद सिंह जयंती 2025 कब है?: Guru Gobind Singh Jayanti date

जन्म और कथा: Guru Gobind Singh Jayanti

श्री गुरु गोबिंद सिंह सिखों के नौवें गुरु “गुरु तेगबहादुर” और “माता गुजरी” के पुत्र थे। 1666 ई. में बिहार की राजधानी पटना में गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। गुरुगोविंद के पिता गुरु तेगबहादुर सिख संप्रदाय के नौवें गुरु के रूप में गुरुगददी सँभालने के बाद आनंदपूर में एक नये शहर की स्थापना करके गुरुनानक की तरह देश भ्रमण में निकल गये। इसी भ्रमण में उन्हें आसाम जाना पड़ा। वहाँ पहुँचने के बीच रास्तों में, वह कई स्थानों से होते हुए गुज़रें और हर जगह सिख संगत स्थापित किया।

अमृतसर से आठ सौ किलोमीटर दूर गंगा नदी के किनारे बसे पटना शहर में सिख संगत स्थापित करने के बाद उन्हें लोगों से इतना स्नेह मिला कि, वहाँ के लोगों के आग्रह पर वह अपने परिवार समेत कई दिनों तक पटना में रहें। पटना मे रहते हुए उनकी पत्नी माता गुजरी ने एक बालक को जन्म दिया, जो आगे चलकर सिखों के दसवें गुरु “गुरु गोबिंद सिंह” कहलाये।

श्री गुरु गोबिंद के जन्म के समय करनाल शहर में एक मुसलमान फकीर हुआ करता था। वह तप और साधना से इतना पवित्र हो चुका था कि, उसमे से परमात्मा की रोशनी प्रदत होती थी। श्री गुरु गोबिंद के जन्म के समय वह फकीर समाधि में बैठे हुए थे, उसी अवस्था में उन्हें प्रकाश की एक किरण दिखाई दी, जिसमे एक नवजात बच्चे का प्रतिबिंब दिखा, जिसे देखकर वह समझ गये थे कि, श्री गोबिंद इस दुनिया में ईश्वर के प्रतीक के रूप मे आए है।

खालसा पंथ की स्थापना: Guru Gobind Singh Jayanti

खालसा का अर्थ होता है पवित्रता। श्री गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh Jayanti) ही सिख धर्म में ख़ालसा फौज की स्थापना की थी। उनका मत था कि एक पवित्र फौज ही मानवता की रक्षा कर सकती है। कहा जाता है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी थे, वह एक महान योद्धा होने के साथ एक धर्म प्रचारक, एक मार्गदर्शक और वीररस ओजस्वी कवि भी थे। उन्होनें मानवता को अपने विचारों मे प्रमुखता दी थी। ख़ालसा फौज की स्थापना करने के बाद इसी पंथ के लोगों के उपनाम में “सिंह” लगाने की शुरुआत हुई थी।

सन 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद साहब (Guru Gobind Singh) ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुयायी विधिवत् दीक्षा प्राप्त करते है। सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – “कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है”? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh Jayanti) उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ।

गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया, पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी तरह पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे, तो उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

उसके बाद गुरु गोविंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दो-धारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा बनने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया, जिसके बाद उनका नाम गुरु गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कछैरा। तभी से सिख समुदाय अपने साथ कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान (कृपाण), कछैरा (कच्छा) अपने साथ रखते है ।

Guru Gobind Singh Jayanti

बहादुर शाह जफ़र के साथ गुरु गोविंद सिंह के रिश्ते

जब औरंगजेब की मृत्यु हुई, उसके के बाद बहादुरशाह को बादशाह बनाने में गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) ने मदद की थी। गुरु गोविंद जी और बहादुर शाह के आपस मे रिश्ते बहुत ही सकारात्मक और मीठे थे। जिसे देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खां डर गया। अपने डर को दूर करने के लिये उसने अपने दो आदमी गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन दो आदमियों ने ही गुरु साहब पर धोखे से वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 को गुरु गोविंद सिंह जी नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए।

उन्होंने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों के ईंट का जवाब पत्थर से दिया ।

गुरु गोविंद साहब द्वारा दिए गये उपदेश

गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) जी की रचनाएं

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