Parshuram Jayanti 2024: जाने परशुराम जयंती की तिथि कब है और क्यों मनाते है?

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Parshuram Jayanti 2024 Date जाने परशुराम जयंती की तिथि कब है और क्यों मनाते है

Parshuram Jayanti 2024: इस वर्ष 2024 में परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) 10 मई को आने वाली है। यह दिन सिंहस्थ के पर्व का भी है। इसलिए इस दिन की मान्यता और भी अधिक बढ़ जाती है। तो आइये हम सब भी इस दिन भगवान परशुराम की पूजा में शामिल हो कर परशुराम भगवान का आशीर्वाद प्रकट करें।

परशुराम जयंती का महत्व: Parshuram Jayanti Celebration

परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है जो कि इस साल 10 मई 2024 को है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता। अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है। भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाले अधिक लोग हैं। मध्य कालीन समय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनुरोद्धार हुआ है, तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस दिन उपवास के साथ साथ सर्व ब्राह्मण का जुलूस, सत्संग भी सम्पन्न किए जाते हैं।

भगवान परशुराम के नाम पर भक्तगण जगह जगह भंडारे का आयोजन करते है और सभी श्रद्धालु इस भोजन प्रसादी का लाभ उठाते हैं। कुछ लोग इस दिन उपवास रख कर वीर एवं निडर ब्राह्मण रूप भगवान परशुराम की तरह पुत्र की कामना करते हैं। वे मानते हैं कि परशुरामजी के आशीर्वाद से उनका पुत्र पराक्रमी होगा। वराह पुराण के अनुसार, इस दिन उपवास रखने एवं परशुराम को पूजने से अगले जन्म में राजा बनने का योग प्राप्त होता है।

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परशुराम शब्द का अर्थ: Parshuram Jayanti 2024

ग्रंथों के अनुसार सतयुग में जब भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण कुल में जन्म लिया तो उनका नाम राम रखा गया। वह भगवान शिव के परम भक्त थे और शिवजी ने उनकी अराधना से प्रसन्न होकर उन्हे अपना परशु नामक अस्त्र दिया तो उनका नाम परशुराम हो गया। परशु नामक अस्त्र उनका मुख्य अस्त्र बन गया। परशुराम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम”। इन दो शब्दों को मिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथ राम” अर्थ निकलता है। परशुराम को भी विष्णुजी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है। परशुराम के अनेक नाम हैं। इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है।

परशुराम जी को अजर-अमर रहने का वरदान प्राप्त है और इसलिए वह हर युग में जन्में भगवान विष्णु के दूसरे अवतारों के साथ भी मौजूद रहे। भगवान राम और भगवान परशुराम सीता स्वंयवर में पहली बार मिले तब राम जी के हाथ में धनुष देखकर वह समझ गए कि धरती पर पाप का अंत करने के लिए त्रेता युग में राम का जन्म हो चुका है।

कौन थे परशुराम?: Parshuram Jayanti 2024

परशुराम ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे। ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे। हिन्दू धर्म में परशुराम के बारे में यह मान्यता है, कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं। परशुराम की त्रेता युग दौरान रामायण में तथा द्वापर युग के दौरान महाभारत में अहम भूमिका है। रामायण में सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे।

परशुराम किसके अवतार थे: Parshuram Jayanti

भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म त्रेता युग में हुआ था। वे ब्राह्मण कुल में जन्मे थे, लेकिन क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए वे योद्धा बने। उनके पिता जमदग्नि और माता रेणुका थीं। भगवान परशुराम को अन्याय और अधर्म के विरुद्ध लड़ने वाले और धर्म की स्थापना करने वाले के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई बार धरती को क्षत्रियों से मुक्त कराया था।

परशुराम जी के परिवार एवं कुल वंश: Parshuram Jayanti 2024

परशुराम सप्तऋषि जमदग्नि और रेणुका के सबसे छोटे पुत्र थे। ऋषि जमदग्नि के पिता का नाम ऋषि ऋचिका तथा ऋषि ऋचिका, प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे। ऋषि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था। ऋचिका ऋषि धनुर्वेद तथा युद्धकला में अत्यंत निपुण थे। अपने पूर्वजों कि तरह ऋषि जमदग्नि भी युद्ध में कुशल योद्धा थे। जमदग्नि के पांचों पुत्रों वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, बृत्वकन्व तथा परशुराम में परशुराम ही सबसे कुशल एवं निपुण योद्धा एवं सभी प्रकार से युद्धकला में दक्ष थे। परशुराम भारद्वाज एवं कश्यप गोत्र के कुलगुरु भी माने जाते हैं।

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परशुराम जी के गुरु कौन थे: Parshuram Jayanti

भगवान परशुराम के गुरु भगवान शिव थे। परशुराम ने अपनी युवावस्था में भगवान शिव की कठोर तपस्या की और उनसे शस्त्र विद्या सीखी। भगवान शिव ने परशुराम को उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए, जिसमें प्रमुख है परशु, जो कि एक फरसा है और इसी कारण परशुराम का नाम पड़ा। शिव के मार्गदर्शन में ही परशुराम ने अपनी योद्धा क्षमताओं को विकसित किया।

Parshuram Jayanti

परशुराम जी के शिष्य कौन कौन थे?

भगवान परशुराम जी ने महाभारत के समय में भीष्म पितामाह, गुरु द्रोणाचार्य एवं कर्ण आदि को शस्त्र एवं अस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। इसलिए वे इन सभी महानुभाव के गुरु कहे जाते हैं। और उनके ये सभी शिष्य उन्हें अपना गुरु यानि भगवान मानते थे।

परशुराम मंदिर: Parshuram temple

भारत में कई जगह भगवान परशुराम के मंदिर स्थित है। उनमें से कुछ नीचे दिये गए हैं:

  • परशुराम मंदिर, अट्टिराला, जिला कुड्डापह ,आंध्रा प्रदेश।
  • परशुराम मंदिर, सोहनाग, सलेमपुर, उत्तर प्रदेश।
  • अखनूर, जम्मू और कश्मीर।
  • कुंभलगढ़, राजस्थान।
  • महुगढ़, महाराष्ट्र।
  • परशुराम मंदिर, पीतमबरा, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश।
  • जनपव हिल, इंदौर मध्य प्रदेश (इसे भी कई लोग परशुराम का जन्म स्थान मानते हैं)।

पौराणिक कथा: Parshuram Jayanti

परशुराम वीरता के साक्षात उदाहरण थे। वे अपने माता–पिता के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे। एक बार परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका पर क्रोधित हुए। रेणुका एक बार मिट्टी के घड़े को लेकर पानी भरने नदी किनारे गयी, किन्तु नदी किनारे कुछ देवताओं के आने से उन्हें आश्रम लौटने में देरी हो गयी। ऋषि जमदग्नि ने अपनी शक्ति से रेणुका के देर से आने का कारण जान लिया और वे उन पर अधिक क्रोधित हुए। उन्होने क्रोध में आ कर अपने सभी पुत्रों को बुला कर अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी। किन्तु ऋषि के चारों पुत्र वासु, विस्वा वासु, बृहुध्यणु, ब्रूत्वकन्व ने अपनी माता के प्रति प्रेम भाव व्यक्त करते हुए, अपने पिता की आज्ञा को मानने से इंकार कर दिया।

इससे ऋषि जमदग्नि ने क्रोधवश अपने सभी पुत्रों को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इसके बाद ऋषि जमदग्नि ने परशुराम को अपनी माता का वध करने की आज्ञा दी। परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपना अस्त्र फरसा उठाया, और उनके चरणों में सिर नवाकर तुरंत ही अपनी माता रेणुका का वध कर दिया। इस पर जमदग्नि अपने पुत्र से संतुष्ट हुए एवं उन्होने परशुराम से मनचाहा वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने बड़ी ही चतुराई एवं विवेक से अपनी माता रेणुका तथा अपने भाइयों के प्रेमवश हो कर सभी को पुनः जीवित करने का वरदान मांग लिया। उनके पिता ने उनके वरदान को पूर्ण करते हुए पत्नी रेणुका तथा चारों पुत्रों को फिर से नवजीवन प्रदान किया। ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम से बहुत प्रसन्न हुए। परशुराम ने अपने माता – पिता के प्रति अपने प्रेम एवं समर्पण की मिसाल कायम की।

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