Pradosh Vrat (Shukla) 2025: क्यों है यह महत्वपूर्ण, कैसे करें पूजा और क्या हैं लाभ

Ishwar Chand
7 Min Read

Pradosh Vrat (Shukla) 2025: प्रदोष व्रत, शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू उपवास है। यह व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। ‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ है ‘संध्याकाल’ या ‘दिन का अंतिम भाग’, और इसलिए यह व्रत सूर्यास्त के बाद किया जाता है।

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इस दिन, भक्त उपवास रखते हैं और शाम के समय भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। शिव लिंग का अभिषेक किया जाता है, और उन्हें बेल पत्र, धतूरा, फूल, फल और मिठाई अर्पित की जाती है। प्रदोष स्तोत्र और मंत्रों का जाप किया जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत स्वास्थ्य, समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करने वाला माना जाता है।

Pradosh Vrat (Shukla) 2025: शुभ मुहूर्त

तिथि: शुक्रवार, 9 मई 2025
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: दोपहर 02:56 बजे (9 मई 2025)
त्रयोदशी तिथि समाप्त: शाम 05:29 बजे (10 मई 2025)
शिव पूजन मुहूर्त: शाम 07:01 बजे से रात 09:08 बजे तक

यह भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए अत्यंत शुभ समय है।

Pradosh Vrat (Shukla) 2025: व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत (शुक्ल) का महत्व अत्यधिक है। यह व्रत मुख्य रूप से भगवान शिव और देवी पार्वती की आराधना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि प्रदोष काल, यानी सूर्यास्त से ठीक पहले का समय, शिव पूजा के लिए अत्यंत शुभ होता है। इस समय में की गई पूजा शीघ्र फलदायी होती है।

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यह व्रत भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति प्रदान करता है। उपवास और भक्तिमय आराधना से मन शुद्ध होता है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। यह भी माना जाता है कि प्रदोष व्रत करने से जीवन में आने वाली बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।

अलग-अलग दिनों के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है। उदाहरण के लिए, सोमवार का प्रदोष व्रत (सोम प्रदोष) मानसिक शांति और अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी प्रकार, अन्य दिनों के प्रदोष व्रत का भी विशिष्ट फल होता है। कुल मिलाकर, प्रदोष व्रत (शुक्ल) भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने, आध्यात्मिक विकास और जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है।

Pradosh Vrat (Shukla) 2025: व्रत की पूजा विधि

  • प्रातःकाल स्नान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • संकल्प: भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • प्रदोष काल में पूजा: सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले, प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा शुरू करें।
  • शिवलिंग का अभिषेक: शिवलिंग को गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी (पंचामृत) से अभिषेक करें।
  • अर्पण और प्रार्थना: भगवान शिव को बेल पत्र, पुष्प, फल, धूप और दीप अर्पित करें। शिव चालीसा या प्रदोष स्तोत्र का पाठ करें और अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना करें।

Pradosh Vrat (Shukla) 2025: व्रत करने के लाभ

  • कष्टों से मुक्ति: यह व्रत भगवान शिव की कृपा दिलाता है, जिससे जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्ट, दुख और परेशानियां दूर होती हैं।
  • मनोकामना पूर्ति: मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, चाहे वह स्वास्थ्य, धन, संतान या अन्य कोई इच्छा हो।
  • स्वास्थ्य और समृद्धि: इस व्रत के प्रभाव से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और जीवन में धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: प्रदोष व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है, जिससे भक्त भगवान के करीब महसूस करते हैं।
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Pradosh Vrat (Shukla) 2025: व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

  • आहार: इस व्रत में पूरे दिन निराहार रहने का विधान है। यदि स्वास्थ्य कारणों से संभव न हो, तो केवल फल और जल ग्रहण किया जा सकता है। अनाज और नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • मन की शुद्धि: व्रत के दौरान मन को शांत और शुद्ध रखें। नकारात्मक विचारों से बचें और भगवान शिव के ध्यान में लीन रहें।
  • पूजा का समय: प्रदोष काल (सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले) में ही भगवान शिव की पूजा करें। इस समय का विशेष महत्व है।
  • दूसरों के प्रति व्यवहार: व्रत के दिन किसी को भी कटु वचन न कहें और सभी के साथ प्रेम और सम्मान का व्यवहार करें। जरूरतमंदों की सहायता करना शुभ माना जाता है।

Pradosh Vrat (Shukla) 2025: व्रत से जुडी कथा?

एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण दंपत्ति थे। उनके कोई संतान नहीं थी और वे भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। एक दिन, जब वे भिक्षा मांग रहे थे, उन्हें एक तेजस्वी बालक मिला जो विधर्मी और अनाथ था। ब्राह्मण दंपत्ति ने उस बालक को गोद ले लिया और उसका पालन-पोषण अपने पुत्र की तरह किया।

एक दिन, बालक को नागों के राजकुमार ने डस लिया। ब्राह्मण दंपत्ति बहुत दुखी हुए। उस दिन प्रदोष व्रत था। माता बालक को लेकर भगवान शिव के मंदिर गईं और पूरी श्रद्धा से प्रदोष व्रत की कथा सुनी और भगवान शिव की पूजा अर्चना की। उनकी भक्ति और व्रत के प्रभाव से बालक जीवित हो उठा।

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नागों के राजकुमार ने बालक को अपना असली परिचय दिया और बताया कि कैसे एक भूल के कारण उसे सर्प योनि मिली थी और प्रदोष व्रत के प्रभाव से ही उसे मुक्ति मिली। उसने ब्राह्मण दंपत्ति का आभार व्यक्त किया और उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर दिया।

इस कथा से प्रदोष व्रत के महत्व और भगवान शिव की कृपा का पता चलता है। यह व्रत न केवल कष्टों को दूर करता है बल्कि असंभव को भी संभव कर सकता है, यदि इसे सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाए।

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