अहसास
बंगलौर एयरपोर्ट पर उतर कर राघव जल्दी जल्दी बाहर निकल रहा था। बाहर उसके नाम का बोर्ड लेकर ड्राइवर खड़ा था। नौ बज चुके थे। दस बजे तक उसे हर हाल में पहुँचना था। आज उसकी बड़ी महत्वपूर्ण प्रेज़ेंटेशन थी। रात 12 बजे तक वह इस पर काम कर रहा था रह रह कर नींद के झटके भी आ रहे थे। सुबह 6 बजे की फ़्लाइट थी चार बजे धर से निकल गया था। उसने गाड़ी में अपना लैपटॉप खोला और एक बार फिर से पढ़ने लगा।
दोपहर 1:30 बजे वह अपना काम निपटा कर फिर से एयरपोर्ट की तरफ़ जा रहा था। बड़ी ख़ुशी हुई थी कि सब कुछ ठीक हो गया था।
उसने ठीक से कुछ खाया भी नहीं था। भूख लगी हुई थी फ़्लाइट में अभी समय था। एयरपोर्ट पर कुछ खा लूँगा यही सोच कर उसने अपना सिर सीट पर टिका दिया और आँखें बंद कर ली लेकिन चैन कहाँ था। रह रह कर शाम की पार्टी का ध्यान आ रहा था आज उस के बेटे का दसवाँ जन्मदिन है घर पहुँच कर उसका प्रबंध भी करना था।
अचानक गाड़ी लाल बत्ती पर रूकीं तो एक झटके में उसकी आँख भी खुल गई। बाहर उसने देखा कि सड़क के किनारे कुछ काम चल रहा है और एक मज़दूर वहीं पत्थरों पर पेड़ के नीचे आराम से सोया हुआ है। वहीं अख़बार पर एक पुराना सा खाने का डिब्बा रखा था कुछ रोटी के टुकड़े अख़बार पर थे। ठंडी हवा के झोकों में वह गहरी नींद में सो रहा था। हरी बत्ती होने पर गाड़ी अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गई। यह मंजर देखकर वह सोचने लगा कि मेरे पास सब सुख- सुविधा है फिर भी नींद जो कि एक कुदरत का दिया हुआ अनमोल तोहफ़ा है उससे मैं कितना दूर हूँ। नींद जो हर इन्सान को कई बीमारियों से मुक्त कर देती है, सब के नसीब में नहीं होती। वो मज़दूर दुनिया के सब ऐशो-आराम से वंचित है लेकिन कुदरत के इस उपहार के कितने क़रीब है।
सारी ज़िंदगी हम भोग विलासिता के चक्कर में पड़ कर ख़ुद को प्राकृतिक ख़ज़ाने से महरूम कर लेते हैं। इस लिए व्यस्त रहो मस्त रहो पर अस्त मत रहो।